Best Example of Entreprenuership| आखिर कैसे बना बालाजी वेफर्स 5000 करोड़ का साम्राज्य |
नमस्कार दोस्तो, Best Example of Entreprenuership| आखिर कैसे बना बालाजी वेफर्स ५००० करोड़ का साम्राज्य | इस ब्लॉग में आपका स्वागत है ।
बालाजी वेफर्स: एक गरीब किसान के बेटे का 5000 करोड़ का साम्राज्य
आप सब ने बालाजी वेफर्स का नाम तो सुना ही होंगा | बालाजी वेफर्स की कहानी उस साहस, संघर्ष और जुनून की कहानी है जो किसी को भी खुद का बिजनेस शुरू करने के लिए साहस सकती है। यह एक ऐसे गरीब किसान के बेटे की कहानी है जिसने सिनेमा हॉल में चौकीदारी करते हुए अपने जीवन की शुरुआत की और अपने दम पर एक ऐसा ब्रांड खड़ा कर दिया जिसका आज करोड़ों लोगों के दिलों पर राज है।

बालाजी वेफर्स के सपनों की शुरुआत
वो साल था 1972 का उस वक्त गुजरात के जामनगर जिले के एक छोटे से गांव और छोटे से घर में पोपट रामजीभाई विरानी नाम के एक किसान अपने परिवार के साथ रहते थे। उस वक्त वो अपना पेट खेती करके भरते थे और परिवार का पेट पालते थे, लेकिन किस्मत ने उनका साथ दे नहीं पायी। कभी बारिश की कमी तो कभी बेमौसम बरसात ने उनकी फसलें बर्बाद कर दीं। इसलिए पूरा परिवार दुविधा में आ गया था | परिवार को पेट पालने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। आखिर उन्होंने अपनी बची कूची जमीन बेच दी और अपने तीन बेटों – चंदुभाई, मेघजीभाई और भिखुभाई – को व्यापार शुरू करने के लिए पैसे बांट दिए।
उस वक्तचंदुभाई १५ साल के थे | वो अपने भाइयों के साथ राजकोट पहुंचे | और उन्होंने ने एक व्यापार शुरू किया, वो व्यापार था खेती से जुड़े सामग्री का। फिर दो साल के अंदर ही अंदर वो व्यापार ठप्प हो गया | क्यूंकि एक तो उनको अनुभव की कमी थी और दूसरा उनके साथ धोखाधड़ी बहुत होती रहती थी | इसलिए उनका भारी नुकसान हो गया |
संघर्ष भरे दिन
असफलता के बाद भी गांव लौटने की कोई उम्मीद नहीं बची थी । चंदुभाई ने राजकोट में स्थित होने का फैसला लिया, लेकिन चंदूभाई पढ़ाई में कमज़ोर थे | इसलिए उन्हें नौकरी मिलने में बहुत दिक्कतें आईं। आर्थिक परिस्थिति इतनी खराब थी कि वो किराया चुकाने के भी लायक नहीं थे। कुछ समय गुजरने के बाद उन्हें एक सिनेमा हॉल में चौकीदारी का काम बहुत मुश्किल से मिला, जिसकी तनख्वाह मात्र 90 रुपये महीना थी। इसके साथ-साथ वह मूवी के पोस्टर्स लगाते और कैंटीन में काम भी कर लेते थे। क्यूंकि किराया चूका के कुछ पैसा बचाना था |
चंदुभाई बहुत मेहनती और ईमानदार भी थे और उनकी ईमानदारी ने एक दिन मालिक के दिल में जगह बना ली |ऐसे ही ईमानदारी का काम करते – करते जल्द ही उन्हें कैंटीन का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया। उन्होंने पहले मसाला सैंडविच बनाना शुरू किया, फिर वो मसाला सैंडविच लोगों को बेहद ही पसंद आया। इस छोटे से व्यवसाय के वजह से उनकी आर्थिक स्थिति में थोड़ा सुधार आया। बालाजी वेफर्स का पूरा राज जानने के लिए Best Example of Entreprenuership| आखिर कैसे बना बालाजी वेफर्स 5000 करोड़ का साम्राज्य | ये आर्टिकल पूरा पढ़िए
एक ऐसी आइडिया जिसने किस्मत चमकादी
सब को कुछ ना कुछ काम की जरुरत थी इसलिए 1982 में चंदुभाई ने अपने परिवार को राजकोट बुला लिया और सभी ने मिलकर काम करना शुरू किया। हालांकि सैंडविच की बिक्री बढ़िया हो रही थी, और मुनाफा भी अच्छा मिल रहा था | लेकिन जो सैंडविच बच जाते थे, वे अगले दिन खराब हो जाते थे। इसकी वजह से उन्हें नुकसान भी ज्यादा झेलना पड रहा था। चंदूभाई इस प्रोब्लेम का सोलुशन ढूंढ ही रहे थे की, इतने में इनके दिमाक में एक आयडिया आया | वो आयडिया था पोटैटो के वेफर्स याने की (आलू के चिप्स) बनाकर बेचना |
फिर उन्होंने चिप्स एक वेंडर से खरीदकर बेचना शुरू किया। लेकिन एक प्रॉब्लम हो रहा था की, वेंडर समय पर सप्लाई नहीं करता था, जिससे ग्राहकों को चिप्स जल्दी नहीं मिल पाते थे। लेकिन उस प्रॉब्लम को चंदूभाई ने एक चान्स की तरह देखा और चंदुभाई ने खुद चिप्स बनाने का निर्णय लिया।
जैसे ही चंदूभाई को पैसे मिलने शुरू हुए, उन्होंने 1000 रुपये की बचत से अपने घर के बरामदे में छोटा सा टीन शेड लगाया और रात में चिप्स बनाना शुरू किया। चंदूभाई जान लगाकर काम कर रहे थे | शुरुआत में चिप्स बनाने में बहुत सारे प्रोब्लेम्स आये | कभी चिप्स जल जाते, तो कभी सही से पकते नहीं थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे उन्होंने परफेक्ट चिप्स बनाना सीख लिया। वो वही टाइम था जहाँ करोडो के बिजनेस की शुरुवात हो रही थी |

बालाजी वेफर्स का जन्म
चिप्स की क्वालिटी और स्वाद के कारण उनकी बिक्री बहुत बढ़ने लगी। क्या आपको पता है बालाजी वेफर्स का नाम कैसे मिला? 1984 में चंदुभाई ने अपने प्रोडक्ट को एक पहचान देने का सोचा और उनके कैंटीन के पास मौजूद हनुमान मंदिर था | उस नाम पर इसे “बालाजी वेफर्स” नाम दिया। यह नाम न केवल लोगों को याद रहा, बल्कि उनकी मेहनत और क्वालिटी ने और ब्रांड ने सक्सेस का आसमान छू लिया |
अब धीरे-धीरे बालाजी वेफर्स की मांगे बहुत ही बढ़ रही थी | इसलिए उनको मैन्युफैक्चरिंग करने के लिए मशीने खरीदने की जरूरत पड़ी। हालांकि, मशीनें महंगी थीं, लेकिन उन्होंने इसकी कार्यप्रणाली को समझा और अपने सीमित संसाधनों से 5 लाख रुपये का लोन लेकर 1989 में गुजरात का सबसे बड़ा पोटैटो वेफर्स प्लांट स्थापित किया। बालाजी वेफर्स का पूरा राज जानने के लिए Best Example of Entreprenuership| आखिर कैसे बना बालाजी वेफर्स 5000 करोड़ का साम्राज्य | ये आर्टिकल पूरा पढ़िए
मार्केट में पहचान बनाना
बालाजी वेफर्स ने धीरे-धीरे अपने बिजनेस में पकड़ मजबूत की। 1992 में उन्होंने अपनी कंपनी को प्राइवेट लिमिटेड के रूप में रजिस्टर कराया और एडवांस मशीनों और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना शुरू किया। यह कदम उनके प्रोडक्ट की क्वालिटी और प्रोडक्शन की क्षमता बढ़ाने में बहुत मददगार साबित हुआ।
उस दिन वो एक ही चीज पर फोकस कर रहे थे | जो की ग्राहकों के स्वाद को समझना | और वो उनकी सबसे बड़ी ताकत थी | जहां उनके प्रतियोगी पारंपरिक स्वादों पर टिके हुए थे, वहीं बालाजी ने हर राज्य के स्थानीय फ्लेवर्स को ध्यान में रखकर प्रोडक्ट्स तैयार किए।
Best Example of Entreprenuership| आखिर कैसे बना बालाजी वेफर्स 5000 करोड़ का साम्राज्य | इसके बारे में अधिक जानने के लिए यह वीडियो देखें।
स्ट्रेटेजी जिसने बदल दिया गेम
1. लोकल फ्लेवर्स पर ध्यान
बालाजी ने पहले हर राज्य में फेमस क्या है, इसका रिसर्च करना चालू किया | और हर राज्य के अनुसार पसंद के स्नैक्स बनाए। जैसे गुजरात में मीठे स्वाद, जबकि महाराष्ट्र में मसालेदार स्नैक्स की मांग को ध्यान में रखा गया। बालाजी वेफर्स का पूरा राज जानने के लिए Best Example of Entreprenuership| आखिर कैसे बना बालाजी वेफर्स 5000 करोड़ का साम्राज्य | ये आर्टिकल पूरा पढ़िए |
2. वेरायटी ऑफ प्रोडक्ट्स
बालाजी ने अपनी प्रोडक्ट रेंज को तीन पार्ट में बांटा –
– वेस्टर्न स्नैक्स:- यंग जनरेशन को टारगेट करते हुए 12 प्रोडक्ट्स।
– नमकीन:- चाय के समय का पसंदीदा स्नैक। इसमें 23 प्रोडक्ट्स।
– वेफर्स:- कोर कैटेगरी जिसमें 12 प्रकार के पोटैटो वेफर्स।
3. टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल
बालाजी ने सबसे अच्छा काम कोई किया हो तो वो ये था की, उन्होंने मैन्युअल काम की जगह ऑटोमेशन को चालू किया। इससे प्रोडक्शन एफिशिएंसी बढ़ी और क्वालिटी बिल्ड हुई।
4. कस्टमर फर्स्ट अप्रोच
बालाजी ने हमेशा कस्टमर्स को प्रायोरिटी पर रखा। उनका लक्ष्य था बेहतर क्वालिटी वाले प्रोडक्ट्स को किफायती कीमत पर उपलब्ध कराना। जिससे कस्टमर्स सटिस्फाइड हो |

चुनौतियों पर मात और जीत हासिल
2011 में एक बड़ी चुनौती आयी | पेप्सिको कंपनी ने बालाजी वेफर्स पर उनके चिप्स के डिज़ाइन का डुप्लीकेट करने का आरोप लगाकर केस कर दिया। कोर्ट ने बालाजी को डिज़ाइन बदलने का आदेश दिया। हालांकि यह चुनौती बड़ी थी, लेकिन चंदुभाई ने कहा कि उनका ब्रांड नाम और गुणवत्ता ही असली पहचान है।
अगर आपको भी आगे जाकर बिजनसमैन बनना है | तो इस आर्टिकल को अच्छे से पढ़ा होंगा और से आपको प्रेरणा मिली होगी ऐसी आशा करता हूँ |
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